भारतीय इतिहास में राजपूतों का गौरवपूर्ण इतिहास: भारतीय इतिहास में राजपुताने का गौरवपूर्ण स्थान रहा है| राजपुताने के रणबांकुरो ने अपने देश जाति धर्म तथा स्वधिनता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने में कभी कोई संकोच नही किये | उनके इस त्याग पर संपूर्ण भारतवर्ष को गर्व रहा है| वीरों की भूमि में राजपूतों के छोटे- बड़े अनेक राज्य रहे जिन्होंने भारत की स्वधिनता के लिए जीवन भर संघर्ष किये| इन्हीं राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान रहा है जिसने इतिहास के गौरव बप्पा रावल, महाराणा कुम्भा, खुमाण प्रथम महाराणा, हम्मीर, महाराणा सांगा, उदय सिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने इस धरती पर जन्म लिए है| आइए जानते हैं राजपूतों का गौरव पूर्ण इतिहास महाराणा प्रताप का जन्म कब और कहाँ हुआ: महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई . वी. को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था| लेकिन उनकी जयंती हिन्दी तिथि के अनुसार संपूर्ण भारत में ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती हैं| महाराणा प्रताप के पिता महाराजा उदयसिंह और माता महारानी जयवंता बाई | वे राणा सांगा के पौत्र थे | महाराणा प्रताप को सभी बचपन में सभी किका के नाम से पुकारते थे| महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कब और कहाँ हुआ: महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था| महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह ने अकबर से भयभीत होकर मेवाड़ त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला और उदय को अपनी नई राजधानी बनाया था हालांकि का मेवाड़ भी उनके आधीन नहीं था महाराणा उदय सिंह ने अपनी मृत्यु के समय अपने छोटे पुत्र को गद्दी सौंप दी थी जो भी नियमों के विरुद्ध था| उदय सिंह के मृत्यु के बाद राजपूतों के सरदारों ने मिलकर 1628 इस्वी को यानी 1 मार्च 1576 इस्वी को महाराणा प्रताप को मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा दिया महाराणा प्रताप के शक्ति का परिचय: महाराणा प्रताप के शक्ति का परिचय इस बात से लगा सकते हैं की महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर बैठते थे उस घोड़े का नाम चेतक था | जो की उस समय में दुनिया का सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था महाराणा प्रताप जब 72 किलो का कवच पहन कर 81 किलो का भाला अपने हाथो में रखते थे| भाला तलवार और ढाल और कवच सहित महाराणा प्रताप का वजन लगभग 208 किलो को उठा कर युध्द लड़ते थे हल्दीघाटी का युध्द: हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच लड़ा गया यह युध्द इतना भयंकर था की इस युध्द को आज भी याद किया जाता हैं | कहा जाता है कि इस हल्दीघाटी के युध्द में अकबर और महाराणा प्रताप के सेना के बीच भयंकर लडाई लडी गयी इस युध्द में महाराणा प्रताप की विजय हुई और अकबर को हार का सामना करना पड़ा महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की कहानी: 1576 ई. वी. में हल्दीघाटी के युध्द अकबर और महाराणा प्रताप आमने सामने थे यह युध्द बहुत ही भयंकर था इस युध्द में अकबर की विशाल सेना ने आक्रमण कर दिया और इस लडाई लगभग 5 घंटों तक चला था इस भयंकर लडाई में महाराणा प्रताप अकबर की सेना से वीरतापूर्ण युध्द कर रहे थे उसी बीच महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक के पैर में तलवार लगा और चेतक का एक पैर कट गया लेकिन चेतक ने हल्दीघाटी के युध्द में चेतक ने अपने महाराज यानि महाराणा प्रताप को युध्द भूमि से भागते हुए 25 फिट लंम्बे नाले को लांघ गया और महाराणा प्रताप की जान बचाया अत्यधिक घायल होने के कारण चेतक को वीर गति प्राप्त हुई